Bhakti Yoga as defined by the Lord and explained by Gurudev

Geetha Nathan

Chapter XII Bhagavad-Gita (From the commentary by Swami Chinmayanandaji):

When working in this world, without the sense of agency and enjoyment, the existing vasanas become exhausted and the ego gets eliminated. Thus awakening from the delusory projections of the ego, the individual attains the State of Pure Consciousness and comes to live thereafter the Eternal, Immortal State – THE KRISHNA STATE OF PERFECTION.

To synthesize the methods of Work, Devotion and Knowledge is at once the discipline of the body, mind and intellect.

Karma Yoga:  All disciplines PURSUED AT THE BODY LEVEL, in order to control the mind and turn it towards the ideal.

Bhakthi Yoga: All methods of channelizing emotions in order to DISCIPLINE THE MIND to contemplate upon the Higher.

Gnana Yoga: All study and reflection, detachment and meditation, PRACTISED AT THE INTELLECTUAL LEVEL, whereby the mind again is lifted to the realm of the silent experience of its own Infinitude.

To practice all the three during our life is to discipline all the three layers in us. Thus, the philosophy of total spiritual transformation of the perceiver, feeler and the thinker, all at once, is the truth made available to us by our Lord Krishna.

Seeing God in All

TK Ramchandar

The 11th chapter of The Gita is on the universal form of the Lord. In this, Bhagwan Sri Krishna teaches us that everything in the universe is based on Him. ‘God is all’ is a profound statement and carries a deeper meaning. God is the substratum of everything in this universe. Just as gold is basis of the material in all gold ornaments, so also is God the basis of the universe. Without the gold, the ornament will not exist; without God the universe has no basis of existence. With that in mind, it is conceptually easier to understand that God is all. God is the mother and the father and the grandfather. We are all from Him and to Him we will eventually return. The food we eat, the water and sun that are needed to grow the food, the soil that is need to support the roots are all God. All the creatures in the world, beautiful and those that are not so pretty are also God. The very basis of our living bodies is because of God and the cause of our death. Through all of this, God is still unaffected by all the happenings just as the gold remains as gold regardless of the shape of the ornament. When we go to sleep, we return to God in our deep sleep and wake the next morning nourished by God’s touch. The great souls truly see God in all and are at complete peace with the world around them. Sri Ramakrishna famously worshipped his wife seeing the presence of Goddess Kali in his wife as well. God alone is the manifest individual, gross and subtle world and the unmanifest potential behind the world.
How do we see God in all? How do we practice what we learn in our satsang and BV classes? Start with the small things. As you go for a walk in the neighborhood, look around you and appreciate the beauty of the flowers, the incredible shades of green, and the humming birds and know that this is the Lord’s beauty. When you see a little child smile at you, it is Him. When your family has returned home safe for the evening, thank the Lord for his Grace. When we strive to constantly remember that the same Lord is in everyone, we will find that everybody is our friend and we have no reason to be angry with anyone.
Once a thief entered the ashram of Sri Ramana Maharishi and demanded money. All the devotees were alarmed. Ramana Maharishi calmly addresses the robber and told him to take whatever he needed. And then he asked the miscreant to stay and have dinner before he left. Ramana truly was able to see God in everybody. That is what we all need to learn to do!

Inspiring Trip to India with Vivekji

Seema Nema

अर्ध आश्चर्य प्रेरणात्मक भारत यात्रा -१०

….आचार्य विवेक जी के संग ( २०१७-१८)

 

प्रत्येक वर्ष, आचार्य विवेक ( नियाग्रा, कनाडा) अमेरिका, कनाडा, लंदन से चिन्मय युवा केंद्र के युवाओं को प्रेरणात्मक भारत यात्रा पर लाते हैं । इस दसवीं भारत यात्रा में मुझ समेत आचार्य विवेक जी ने ३५ यात्रियों को,  उत्तराखंड के विभिन्न एतिहासिक सुंदर स्थानों के दर्शन, उनके इतिहास के विवरण के साथ कराए। इस यात्रा का एक सुनहरा पक्ष ये रहा कि, कई स्थल ईश्वर की कृपा

से स्वतः ही बिन प्रयास जुड़ते गए कि हम सब आश्चर्य चकित रह गए। इसलिए इसे अर्ध आश्चर्य भारत यात्रा का नाम दिया गया ।

यात्रा दिल्ली के लोधी रोड चिन्मय मिशन से आरम्भ हो सर्वप्रथम अक्षरधाम पहुँची। जहाँ हमारे जिज्ञासापूर्ण प्रश्नों के उत्तर के माध्यम से विवेकजी ने, अद्वैत व गुरु शिष्य परम्परा का सही ज्ञान समझने की क्षमता को सशक्त किया । तत्पश्चात दो बसों में हम विवेकजी की निगरानी और नेतृत्व में मोक्ष द्वार नगरी हरिद्वार निकल पड़े । वहीं से हमारा श्री मद्भगवतगीता अध्याय – १२ का अध्ययन भी शुरू हो गया । प्रत्येक दिन १ घंटे की प्रातः काल विवेकजी की कक्षा के बाद,  हम स्थलों के दर्शन हेतु निकल जाते थे। हर की पौड़ी पर, भगवान की असीम अनुकंपा से आरती व अभिषेक का अवसर प्राप्त हुआ। यहीं पर हमने दक्ष प्रजापति महादेव के एतिहासिक मंदिर के दर्शन किए । बिन प्रयास स्वतः ही जो क्षण, गंगा मैया के तट पर मिले, वो आजीवन एक अमिट स्मृति के रूप में हृदय में सदा के लिए चित्रित हो चुके हैं ।

लंदन, शिकागो, क्लीव्लैंड, कनाडा, नोर्थ कैरलाइना, पॉर्ट्लैंड, ओहायो, सभी जगहों के लोग, एक परिवार की तरह सीता -राम- वल्लभ भवन के अतिथि सत्कार के बाद ऋषिकेश बढ़ चले। उस पवित्र स्थल पर पहुँचे, जहाँ बालन ने अपने पुराने जीवन को पूज्य स्वामी शिवानंद के पथ प्रदर्शन में एक नया आयाम प्रदान किया – ‘ स्वामी चिन्मयानन्द’ । डिवाइन लाइफ़ सोसायटी के आश्रम में पूज्य स्वामी शिवानंदजी की समाधि के दर्शन किए। जहाँ आज भी २४ घंटों वर्षों से हरे राम हरे कृष्ण का पाठ चल रहा है । उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को महसूस करते हुए पूज्य गुरुदेव की कहानी को, हम वहाँ खड़े – खड़े साक्षातदेखने का प्रयास कर रहे थे । प्रत्येक यात्री को प्रतिक्षण, गुरुजनों के आशीष व भगवान की कृपा का आभास हो रहा था । श्री वेद महावाक्यों का एक स्तम्भ वेदांत की अनुपम व्याख्या कर रहा था ।

इसके पश्चात हम वारणाव्रत पर्वत पर उजेली में  ( उत्तराखंड) स्थित उत्तरकाशी के चिन्मय मिशन आश्रम पहुँचे । जहाँ स्वामी बोधात्मॉनंद जी के सहपाठी स्वामी देवत्मानंदजी को सुनने का अवसर मिला। वहीं पर यकायक पूज्य गुरूजी के सहपाठी पूज्य स्वामी दिव्यानंदजी से मिले और उन्होंने गुरूजी के सुंदर अचम्भित क़िस्सों से अवगत कराया । जैसे जैसे हम उत्तर की बढ़ रहे थे, अचरज से भरी कहानियों से भारी हो हमारी वाणी मौन होती जा रही थी । भारतवर्ष का आध्यात्मिक पक्ष अपनी सुंदरता और पवित्रता का बखान करता जा रहा था ।

हर की पौड़ी की रोमांचित करने वाली आश्चर्य आरती के बाद एक और अचंभा हमारी झोली में गिरने वाला था और वो था “ गंगोत्री दर्शन” । इस मौसम की कड़कड़ाती ठंड में वह रास्ता बंद रहता है, परंतु क़िस्मत से वो खुला था और सारा शहर बंद था । गंगोत्री से पवित्र गंगाजल लाने का, व पूज्य तपोवन महाराज की अद्भुत कुटिया जहाँ ग्रंथों सृजन हुआ का भी सौभाग्य मिलना एक स्वप्न सा प्रतीत होता है जो किसी ने कल्पना में भी नहीं सोचा था। जिसका सारा श्रेय विवेक जी को जाता है जिन्होंने उस समय व्यक्ति रहित गंगोत्री शहर में अपनी याददाश्त के सहारे पूज्य तपोवन महाराज की कुटिया ढूँढ निकाली जिसपर – सेवक सुंदरानंद लिखा था।

उत्तरकाशी में स्थित अद्भुत काशी विश्वनाथ में स्वयंभो आशुतोष व उनके विराट त्रिशूल के दर्शन किए । शिवलिंग के प्रांगण में सत्संग व भजन किए । उत्तरकाशी आश्रम में पूज्य तपोवन महाराज की कुटी के अंदर से दर्शन किए। पूज्य गुरुदेव की कुटिया भी देखने को भी मिली। ढेर सारे सत्य से भरे अनुभवों को हृदय में क़ैद कर हमने स्वामीजी व उत्तरकाशी से विदा ली। एक और आश्चर्य यह था कि, हमारी सारी योजनाएँ बस में ही समयानुसार बन रही थीं । वैसे ही सब की सहमति से विवेकजी ने चिन्मय मिशन अमृतसर में रात्रि विश्राम करने का निर्णय लिया। जहाँ बहुत कम समय की सूचना पर भी ब्रह्मचारी श्री तारक  चैतन्य जी ने हमारा स्वागत व प्रबंध किया । उन्होंने हम सबके भोजन का भी प्रबंध किया व स्वर्ण मंदिर के कई सत्य बातों की विस्तार से जानकारी दी ।

लगातार नए अनुभवों से अब हम सबको विश्वास हो चला था कि हमारी झोली में अभी और भी आश्चर्य गिरने वाले हैं । हमने जालियाँ  वाला बाग़ भी देखा और शहीदों के बलिदान को प्रणाम किया। भोजन करके हमने सिद्धबाड़ी के लिए प्रस्थान किया । रात्रि १० बजे हम सिद्धबाड़ी के अप्रतिम आश्रम पहुँचे। द्वार पर ही विराट पवनसुत की प्रतिमा के देख कर लगा जैसे आश्रम उनकी निगरानी में ही हो । वे द्वार पर राम काज करने को आतुर, रक्षक से विराजमान थे।

पूज्य गुरुदेव की समाधि स्थल के दर्शन के उपरांत भोजन किया । आश्रम के नियमपालन के अनुसार प्रातः व सायं के आरती के मध्य सभी ने कॉर्ड की सर्विस ट्रिप की ।

सिद्धबाड़ी में पूज्य गुरुदेव तुल्य सुश्री क्षमा मैतरे दीदी से भेंट हुई । न जाने क्यों अंतर्मन कह रहा था जैसे दीदी से नहीं वरण गुरुदेव से भेंट हो गयी क्योंकि ज्ञान को अभ्यासपूर्वक जीवन में उतारते हुए, दूसरों की सेवा में स्वयं को समर्पित करने का नाम ही क्षमा दीदी है ।

हम सभी ने ३ दिन के कॉर्ड सर्विस की, जहाँ कई सारे पहलुओं पर हो रहे काम को साक्षात देखने का अवसर मिला। उन लोंगों से मिलकर अत्यंत प्रसन्नता हुई जो परदे के पीछे रह कर सालों से नि:स्वार्थ सेवा में मग्न हैं। जिन्हें नाम पहचान की कोई दिलचस्पी नहीं है वो तो अपनी सेवा के अत्यंत मीठे अनुभवों से बेहद संतुष्ट व प्रसन्न हैं ।

आश्रम में पूज्य स्वामी सुबोधानंद जी के दर्शन भी हुए । उनकी निर्मम शब्द की व्याख्या ने मुझे मनन कराया और एक कविता लिखने की प्रेरित किया।

 

श्री मद भगवत गीता अध्याय १२, श्लोक १३ से प्रेरित ~

“निर्मम “

मैं – मेरा” “तुम-तुम्हारा” का भ्रम,

एक कठिन अभ्यास है जीना, निर्मम॥

 

साँसों का अनुलोम – विलोम जैसा,

रिश्तों से नाता हो बस, मोह – त्याग सा ॥

 

माता पिता, भाई बहन, पति पत्नी, बेटा।

सब में एक सा है कुछ, बस अलग है मुखौटा ॥

 

किराए का है सब कुछ, देह भी नहीं मेरी,

दाता-कर्ता-भोक्ता एक ही, पीताम्बर धारी॥

 

कैसी विडंबना है, माया का मोहक है जाल ।

फ़सने के बाद भी, निकलने का न आता ख़याल॥

 

जागृत अवस्था भी, सुप्त ही होती प्रतीत ।

नींद से उठ जायें तो, गुरु की होगी जीत ॥

 

जो भटकी गायों को हाँक,पथ परलाते बारम्बार ।

कान्हा की तरह, ज्ञान की बँसी बजाते कई बार ॥

 

वहाँ से हम वापसी में कुरुक्षेत्र में भीष्म कुंड को देखते हुए वापस दिल्ली को आ गए ।जहाँ स्वामी जी के सुमधुर भजन के साथ यहीं हमारी  अनूठी अर्ध आश्चर्य उत्तर भारत यात्रा समाप्त हुई ।

 

सीमा नेमा 

 

Values and valuables

Karthy Chandra

Having immigrated from India at a young age, my life has always been a delicate balance of adapting to the cultural norms of the society I am tangibly in touch with and staying connected to the rich cultural roots of my heritage. The aroma of South Indian spices, Bharathanatyam & Ballet dance classes, and a fluid linguistic fusion of English and Malayalam make up the colorful mosaic of my childhood.

Through Chinmaya Mission, I found a community of like-minded people who shared the same inclination to strike a balance between their Indian heritage and this American life. It was a place that helped me connect with my family over our shared spiritual values, along with others in the local Indian community and at Chinmaya centers around the country. The classmates I grew up with left a lasting impact on my life and are still close friends. They understood what it was like to have to change out of your indian clothes to watch a movie after Balavihar or argue with your parents about whether you had time to learn geeta chanting. We could relate to each other in a way that we couldn’t with most other people.

As an alumni, I cherish the memories I’ve made at Chinmaya Mission and appreciate its values and teachings that incubated my spiritual growth. I always look forward to visiting our center back in Portland and delight in witnessing it’s growth and development. I am proud to be part of this community of cherished companions, dedicated volunteers, and spiritual seekers. Hari om!